Thursday, 31 May 2018

*दुनिया में बौद्ध आबादी या जनसंख्या के बारें महत्त्वपूर्ण जानकारी... जरूर पढे..*



आज दुनिया के अलग अलग देशों में बौद्ध जनसंख्या के सटीक आंकडे उपलब्ध है।
यह जानकारी उपयुक्त सभी संबधित अलग अलग देशों में किये गये Studies और Investigation पर आधारित हैं।
जिसमें लोगों ने कबूल किया, कि उनका बौद्ध धर्म पर पूरा विश्वास है, और वह उसकी Practice करते हैं। वो अपने आप को #Buddhist घोषित करते हैं।

इन अध्ययनों के नतीजे वर्ष 2010-2013 के मध्य में प्रकाशित हुए थे।
(www.thedhamma.com/buddhist_in_the_world.htm 2010;)
("China Beliefs"
Justchina.org.,2011;)
("China Culture Exploring Assistant",
China business
Interpreter.com,2011)
(CIA The World Fact book: Populations as
of July 2013)
(The Dhamma Encyclopedia-
Buddhism in the World).

यह Estimates संबंधित अलग-अलग देशों में बौद्ध जनसंख्या की सच्ची स्थिति को दर्शाते है।

July 2010 में बौद्ध जनसंख्या का Estimated 1.6 से 1.8 billion लगभग (160 - 180 करोड़) के करीब था।

दुनिया की जनसंख्या का 22% से 25% हिस्सा है। इसे स्वतंत्र Estimate के तौर पर सुचित किया गया है।

स्वतंत्र Estimate अनुसार चीन की वर्तमान जनसंख्या में Over One Billion (1,070,893,447) [ 107 करोड़ से भी ज्यादा ] बौद्ध अनुयायीओ की जनसंख्या है। एक और सर्वेक्षण के अनुसार चीन की 91% आबादी (122 करोड) बौद्ध है..यह दुनिया की बौद्ध आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा है। यह बात उपर दिये गये संदर्भो से प्रमाणित होती है।

इसके अलावा
(China's Buddhist population in U.S State Department Report on China) ,
(Global Center for the Study of Contemporary China) ,
(China Daily)
और (a report by Christian missionaries in China).
इन स्त्रोतों से पता चलता है, कि इनके द्वारा किये गए निरीक्षण में चीन के 80% से 91% लोगों ने अपनी पहचान Buddhism के साथ जोडी हैं।
तथा उसकी परंपरा पर पुरा विश्वास प्रकट किया है। और हाल ही में हुए कुछ अध्ययन दर्शाते है, कि चीन के 98% लोग खुद को Buddhist मानते है।

भारत में जनगणना के अनुसार 1% से कम बौद्ध है लेकिन बौद्ध विद्वान, और अन्य सर्वेक्षण के अनूसार भारत में कुल 3% से 5% बौद्ध जनसंख्या है, 1959 में एक सर्वेक्षण के अनुसार तब भारत में करीब 2 करोड बौद्ध आबादी थी जो भारत की आबादी का 4.5% हिस्सा था, तब से लेकर आजतक इन 50-60 सालों मे भारत के हर साल लाखो लोग बौद्ध धर्म का स्विकार किया है इसलिए बौद्ध आबादी 0.5% से 1% बढ गई होगी, मतलब की भारत में आज 5 से 5.5% (6.6 करोड) बौद्ध जनसंख्या है।

पर साथ ही साथ चीन की अनेक अध्यात्मिक परंपरा पर भी विश्वास जताया।
(www.thedhamma.com/buddhist_in_the_world.htm, The Dhamma Encyclopedia, Definition of a Buddhist by David N.Snyder).

#Buddhist_Population Of Selected Countries
{ 1 Million = 10 लाख } {1 Billion = 1अरब}

चीन 1.07 - 1.22 Billion (80% - 91%)
जापान 122 million (96%)
वियतनाम 74 million (85%)
थायलँड 64 million (95%)
भारत 61- 66 million (5%- 5.5%)
म्यांमार 49.7 million (90%)
दक्षिण कोरिया 24.5 (54%)
तायवान 21.7 million (93%)
श्रीलंका 16.1 million (70%)
कंबोडिया 14.7 million (97%)
हाँगकाँग 6.4 million (90%)
मलेशिया 6.2 million (21%)
अमेरिका 6 million (02%)
लाओस 5 - 8 million (67%- 98%)
इंडोनेशिया 4.3 million (01.7%)
उत्तरी कोरिया 3.4- 17.6 million (14%-71%)
नेपाल 3.3 - 6 million (11.5% -21%)
मंगोलिया 3 million (93%- 98%)
सिंगापुर 2.8 - 3.7 million (51% - 67%)
फिलीपीन्स 2 million (01.5%)
रशिया 2 million (01.4%)
कॅनडा 1.2 million (03.5%)
बांग्लादेश 1.1million (00.7%)
फ्रांस 1million (01.5%)
ब्राजील 1million (0.5%)
जर्मनी 905,657 (01%)
इंग्लैंड 760,747 (01%)
भुटान 609,249 (84%- 94%)
ब्रुनेई 58,498 (17%)
(Near Malaysia)
मकाउ 466,402 (75%- 90%)*
सिक्किम 171,000 (28%- 30%)**
लद्दाख 125,000 (45%)***
ऑस्ट्रेलिया 528,977 (2.5%) (2011)
स्पेन (300,000)
नेदरलँड (201,660)
इटली (122,965)
मॅक्सीको (108,700)
कोस्टारिका (96,733)
पेरू (89,500)
उज्बेकिस्तान (85,985)
स्विझरलँड (79,960)
टर्की (71,159)
पनामा (68,000)
वेनेजुएला (56,000)
अर्जेंटिना (42,600)
ओमान (32,049)
चिली (17,200)
सौदीअरब 414,016 (1.5%)
कुवैत 100,222 (4%)
न्यूझीलँड 58,404 (1.50%)
कतर 45,361 (5%)
यु.ए.ई (5%)
बहरीन (2%)
लेबनान (2.1%)
बर्नोयस (16.8%)
नॉर्थ मारियन (15.6%)
नौरू (11.9%)
गूआम (3.8%)
फ्रेंच गूयाना (3.6%)
मॉरेशियस (2.1%)
क्रिसमस आईसलँड 1,554 (75%)
(Territory of Australia)

इस सर्वेक्षण के अनुसार, पूरी दुनिया में आज करीब 1.8 अरब (180 करोड़) बौद्ध अनुयायी फैले हुए है...जो विश्व आबादी का 25% हिस्सा है।

चीन में 2.5 लाख से ज्यादा भिक्खू और भिक्खूनीया है। 28,000 से अधिक बौद्ध मठ (monasteries) है, 16,000 से ज्यादा बौद्ध विहार है। बौद्ध वास्तूकला की अमिट छाप चीन पर दिखाई देती है। चीन ने अधिकारिक तौर पर कहा है, कि बौद्ध धम्म चीन अभिन्न अंग है।
हाल ही में 16 से 18 ऑक्टोंबर 2014 को चीन में हुई, 27th वी World Fellowship Of Buddhist (WFB) विश्व बौध्द भातृसंघ की आंतरराष्ट्रीय षरिषद हुई। जीसका मुख्यालय थायलँड मैं है, इसके 35 देशों में 140 रिजनल सेंटरस् हैं।
इस (WFB) की षरिषद में 40 देशों के 600 प्रतिनिधि शामिल हुए थे। जिसमें सारे प्रतिनिधीयों ने एकमत से प्रस्ताव पारित किया कि, सारे बौद्ध देश आपस में मजबूत सहबंध, एकता और भाईचारा बनाएंगे। तथा सब विश्व शांति,मानवी कल्याण और समाज सेवा के लिए बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार करेगें। चीन ने विश्व में सबसे मजबूत बौद्ध राष्ट्र के नाते जिम्मेदारी ली है, कि वह विश्व में बौद्ध धम्म फैलाने में अगुवाई करेंगा। तथा आंतरराष्ट्रीय तौर पर उसको समर्थन देंगा। बौद्ध धम्म और उसकी मान्यताएं, मूल्यों तथा परंपरा को सुरक्षित करेंगा। इस परिषद में सब देशों ने मिलकर काम करने की, तथा बौद्ध धम्म की धरोहर को संरक्षित करने और उसकी विचारधारा को फैलाने के लिए प्रतिबद्ध होने का वचन दिया। इस परिषद में Buddhist Association Of China (BAC) के अध्यक्ष मास्टर चाउनईन ने कहा, यह परिषद milestone साबित होंगी। (WFB) और (BAC) मिलकर काम करेंगे। तथा चीन आर्थिक रूप से बुद्धिस्ट राष्ट्रों की मदत करेंगा। वहां बुनियादी ढांचे का विकास करेंगा, जैसे वह श्रीलंका में कर रहा है।
Dr.Daya Hewapathirane - Advisor to the President of Srilanka.
-Asia Tribune-

कौन कहता है, भारत विश्व गुरु नही है। वह हजारों सालों से विश्व गुरु रहा है, और आज भी है। बौद्ध धम्म भारत की सच्ची विरासत, सभ्यता और संस्कृति है। जीसे पूरी दुनिया ने स्वीकार किया है। भारत की संस्कृति अब दुनिया की संस्कृति बन गई है। डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर कहते," सत्य भी कभी कभी हार जाता है,यह उसका ही उदाहरण है।
पर सत्य ज्यादा देर तक छुपाया नही जा सकता,
भारत में बौद्ध धम्म की ऐसी लह़र आयेंगी की उसमे सब बह जाएंगे। जो उसके विपरीत जाएगा वो भी उसमें बह जाएंगा"।
भारत एक बार फिर बौद्धमय होंगा, जैसे सम्राट अशोक के समय 90% लोग बौद्ध थे। और आगे कुछ समय बाद पुरी दुनिया की आधी से जादा आबादी बौद्ध हो गई थी...
अब तो यही कहेंना पडेंगा
"जग में बुद्ध का नाम है, यहीं भारत की शान है"

भारत के बौद्धों को अब अनुसूचित जाती का आरक्षण देने का फैसला हो गया है इसलिए भारत के बौद्ध अनुयायी स्कूल रिकोर्ड में, जनगणना में, सरकारी दफ्तरों में अपने धर्म को " बौद्ध " ही लिखिए और लिखवाइए..

बाबासाहेब ने धर्मांचरण के बाद कहॉ था अगर में दो वर्ष और जी जाऊ तो मैं दो साल के भारत में 5 करोड़ (15%) बौद्ध बनाकर दिखाऊंगा... हम बाबासाहेब के अनुयायी है और आज 60 साल क् बाद भी भारत में 15% बौद्ध नहीं है और 'ऑफिशियल' बौद्ध भी 5 करोड नहीं है..
इसलिए अपने धर्म को बौद्ध लिखिए..
इससे बौद्ध जनसंख्या बढेगी नहीं बल्कि बौद्धों की सही जनसंख्या पता चलेगी.. असम में भारत में बौद्ध धर्म को मानने वालों की आबादी 6.6 करोड से अधिक है जो ख्रिश्चन, शिख, जैन की जनसंख्या से भी अधिक है.. लेकिन बौद्ध लोग जनगणना एवं अन्य रोकॉर्ड में अपने धर्म "बौद्ध धर्म" नहीं लिखवाते.. आज महाराष्ट्र में 1.4 करोड बौद्ध है...

इस msg को इतना फैला दो की भारत में इसकी सुनामी आ जाए

बुद्ध फुले शाहू आंबेडकरी विचारधारा सभी लोगो तक पहुँचाने के लिये इस पेज को लाइक करे और इस पेज को अपने प्रोफाइल पर शेयर करे...

Monday, 28 May 2018

भगवान विष्णु के अवतार नहीं है बुद्ध!

बौद्ध धर्म कि प्रगति के कारण आर्य ब्राह्मण धर्म विकसित नहीं हो पा  रहा था , कर्मकांड , यज्ञ बली, पुरोहितवाद आदि ब्रह्मणो के आय के मुख्य स्रोत  थे जिस पर बौद्ध राजाओं ने प्रतिबंध लगा दिया था इसलिए आर्य  ब्राह्मण आर्थिक रूप से कमजोर हो गए थे |



आर्य ब्रह्मणो का प्रतिष्टा का दूसरा स्रोत जाती प्रथा थी जिसके सहारे वे अपने को समाज से ऊँचा मानते थे और खुद को देवता तुल्य समझ कर समाज से पुजवाते थे , बौद्ध धर्म जातिवाद का विरोधी था और इसमें सभी सामान थे | जाती नियमो का कोई स्थान नहीं था जैसा कि आर्य ब्रह्मणो में था |



आर्य ब्रह्मणो का तीसरा और महत्वपूर्ण प्रतिष्टा , शक्ति का जो स्रोत था वह थी संस्कृत भाषा , जिस पर बरह्मणो का एकाधिकार था और दूसरी किसी भी  जाती( खास कर शुद्रो के लिए ) के लिए संस्कृत पढ़ना निषेधथा | बुद्ध ने अपने बौद्ध धर्म का प्रचार जनसाधारण कि पाली भाषा में किया और बौद्ध राजाओं के शासनकाल में बौद्ध धर्म ग्रन्थ और साहित्य भी पाली भाषा में ही लिखे गए | अत: बौद्ध धर्म के आने के बाद आर्य ब्रह्मणो के आय और प्रतिष्टा के सारे स्रोत सूख गए थे जिस कारण ब्राह्मण वर्ग  विचलित हो गया था |



परन्तु जब तक सर्वोच्च प्रजातंत्रीय बौद्ध धर्म अपने मूल सिद्धांतो पर बना रहा और इसके शक्तिशाली राजा अपने बौद्ध नियमो पर बने रहे तब तक आर्य ब्रह्मणो के लिए यह सम्भव नहीं था कि वो अपनी तानाशाही फिर से भारतीय समाज पर थोप सके|



बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् से सन ६५० ई. तक बौद्ध धर्म प्रणियों के कल्याण में लगा रहा परन्तु  अपनी हार से तिलमिलाए आर्य ब्राह्मण इसके पतन के उपाय में निरंतर प्रत्यनशील रहे | इस तरह  सर्वप्रथम क्षति पहुचने प्रयास उन आर्य शासको  ने किया जिन्होने ऊपरी तौर पर बौद्ध धर्म अपना कर उसमें अपने धार्मिक विश्वासो का मिश्रण कर महायान सम्प्रदाय का विकास कर पहुचाई | इन आर्यों  में शक , कुषाण , महायानी आदि विद्वान्  थे जिन्होंने पाली भाषा में लिखे मूल बौद्ध धर्म ग्रंथो का अपनी संस्कृत भाषा में अनुवाद करवाया और उसमें अपनी मन मर्जी से मनमाने आख्यान जोड़ दिए।



बौद्ध धर्म को विघटित कर उस में से महायान सम्प्रदाय उत्पन्न करने वाले ब्राह्मण आचार्यो में प्रमुख थे आचार्य असंग , अश्वघोष आदि जिन्होंने बुद्ध को विष्णु  अवतार घोषित कर उन्हें दिवंगत बौद्ध धर्म गुरु से एक जीवित रक्षक देवता  बना दिया । जिसका  परिणाम यह हुआ कि बौद्ध धर्म में भक्ति के समवेश से उनका रूप ही बदल गया ।



कालांतर में इन विदेशी मूल के आर्य ब्रह्मण विद्वानो ने अपने पुनर्जन्म के सिद्धांत के आधार पर तथागत बुद्ध को फिर से अवतार(  मैत्र्ये) लेने कि घोषणा भी कर दी। उनके  अनीश्वरवाद के सिद्धांत के विपरीत उनके अनगिनत चित्र बना दिए जो ब्रह्मा , विष्णु,,महेश,गणेश आदि देवताओं के समान थे । इन विद्वानो ने बुद्ध के ऐसे ऐसे चित्र  बनाये जिसमें बुद्ध के साथ अनेक ऐश्वर्यशाली वस्तुए दिखाई देती थे , उन के साथ अंगो को प्रकट दिखाने वाली स्त्रियों के भित्ति चित्र बना डाले ।



नाग को अनेक बुद्ध विहारो का रक्षक देवता बना डाला ,इन सबके ऊपर बुद्ध अगम्य स्वर्ग में विराजमान दिखा दिए गए। कई प्राचीन कहानियों को ज्यों का त्यों बुद्ध कि पुनर्जन्म कि कथाओं के रूप ( जातको) में बदल दिया और उनके पार्थिव  के अवशेषो कि पूजा आरम्भ कर दी । फलत: तथागत बुद्ध अधिक अधिक रूप में पृष्ठ भूमि में पड़ते गए । इन आर्य ब्रह्मणो ने दूसरी चाल यह चली कि धीरे धीरे प्राचीन अनुष्ठानो को परिष्कृत कर उन्हें तंत्र विद्या के नाम में मिश्रित कर लिया । अत: महायान का रूप तंत्रयान हो गया , इससे नए सम्प्रदाय अस्तित्व में आये। इन सम्प्रदायों ने वे अन्धविश्वास ,चमत्कार , पुनर्जन्म , आत्मा, ईश्वर , देवता , आदि आडम्बर अपना लिए जिनका बुद्ध जीवन भर विरोध करते रहे ।



महायान मत का उदय ब्रह्मणो द्वारा इसलिए  किया गया ताकि बौद्ध धर्म का मूल सिद्धांत को नष्ट किया  जा सके और इसे ब्राह्मण मत( शैव, वैष्णव आदि) के निकट लाया जा सके । महायनीयों ने बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतो को मानने वालो को हीनयान का नाम दिया । कालांतर में इन्ही महायनीयों ने बुद्ध के विषय में मनमानी जातक कथाये बनाई और भागवत धर्म और शैव धर्म का प्रचार किया ।



बुद्ध के सिद्धांत –

1 – अपना दीपक आप बनो

2-तुम अपना शरण्य आप बनो

3 -अपने निर्वाण का प्रयत्न तुम स्वयं करो

4 – आत्मा , ईश्वर नाम कि कोई वास्तु नहीं है



जबकि महायनीयों ने उल्टा किया –

1- ईश्वर भक्ति को स्थान दिया

2-आत्मा परमात्मा , स्वर्ग आदि पर विश्वास किया

3-बुद्ध कि मूर्ति बना दी और उन्हें अवतार घोषित कर दिया

4 तंत्र  मन्त्र , कर्म कांड पर जोर दिया



मध्यकाल में भी इन सम्प्रदायो ने तर्कसंगत बौद्ध शास्त्राथो को मोड़कर कर्मकांडी चर्चाओं कि ओर कर दिया। कुमारिल भट्ट और उनके शिष्यो ने बौद्ध गुरुओं से शिक्षा ग्रहण कर बौद्ध धर्म विरोधी संस्कृत गर्न्थों कि रचना कि । इसी प्रकार नागार्जुन और बसुबन्ध ने लंकावतार व् माध्यमिक सूक्त कि रचना कर गौतम बुद्ध  के न्याय सूत्रो का खंडन किया और उनके प्रतिउत्तर में वात्सायन मुनि ने न्याय भाष्य कि रचना कि , उनका खंडन दिदनाथ ने किया । उसके प्रतिवाद में उद्धोताचार्य ने  न्याय वर्तिका टीका लिखी ,  प्रकार महायानियो ने बौद्ध धर्म का उपयोग जन कल्याण के बजाय व्यर्थ वाद-विवाद में करना आरम्भ कर दिया । कुमारिल भट्ट ने तर्कपूर्ण बौद्ध शास्त्रो को उलटने के उद्देश्य से ही पूर्व मीमांसा कि रचना कि । ग्रन्थ कि टीका से उसने यह स्पष्ट किया कि उसका उद्देश्य बौद्ध धर्म समाज कि धार्मिक स्वतंत्रता नष्ट करना है । इस ग्रन्थ में कुमारिल भट्ट ने ऐसे सिद्धांत ईजाद किये कि उसका आधार बना के बाद के ब्राह्मण विद्वान् अपने हिसाब से धर्म व्यवस्था करने लगे ।





आर्य ब्रह्मणो  का बौद्ध  धर्म के प्रति द्वेष कितना था इसका मात्र एक उदहारण से आप अंदाजा लगा सकते है । आज किसी को यदि बदसूरत या कुरूप कहना हो तो हम उसको “भद्दा” कह देते हैं । परन्तु क्या आपको पता है कि यह भद्दा शब्द कहा से आया? यह “भद्दा’ शब्द पाली भाषा के ‘भद्द’ शब्द से आया है। पाली भाषा में भद्द का अर्थ होता है ‘सुन्दर’ जो कि बौद्ध भिक्षुओं के सम्मान में उपयोग होता था परन्तु आर्य ब्रह्मणो ने द्वेष वस् भद्द को भद्दा कर दिया और उसका उल्टा और अपमानजनक अर्थ कर दिया । - नवभारत टाईम
December 24, 2013, 6:30
तिरूपति बालाजी एक प्राचानी बौद्ध क्षेत्र-डा.के.जमनादास





भगवान तिरूपती बालाजी एक बौद्ध क्षेत्र है यह लेखक का दावा है सशक्त सिद्धान्तों पर तथा सभी विद्वानों द्वारा स्वीकार लिय गये सबूतों पर निर्भर है। तिरूपति को बौद्ध क्षेत्र माने जाने के लिए कुछ मूलभूत सवालां का सही-सही जवाब मिलना जरूरी है ऐसे सवाल जिन को लेखक ने सही तरीके से उठाया है। वे है।
1.मूर्ति के गुण लक्षणों की जनता के सामने खुलेआम चर्चा क्यों नहीं करने दी जाती?
2.तिरूपति मंदिर के परिवार देवता नहीं है-ऐसा क्याें?
3.समूचे भारत में यहीं केवल एक मात्र एक देवता विष्णू मंदिर क्याें है?
4.तिरूपति में 966 र्इ. तक नियमित पूजा अर्चना नहीं होती थी ऐसा क्यों?
5.यहां के मूर्तियाें को उन के आगमीय क्यों नहीं जाना जाता है?
तिरूमलार्इ मूर्ति को 'स्वयं व्यक्त संज्ञा लगाये जाने का मतलब है मूर्ति पहले से ही थी और उसी जगह पर थी एक शूद्र रंगदास ने उसे खोजा उसका पुनरोद्धार किया और पूजा अर्चना शुरू हुर्इ। मुसिलम आने से पहले केवल बौद्ध ही ब्राह्राणें के विरोधक थे। लेकिन कोइर्ह भी बौद्ध राजा या बौद्ध जनता ब्राह्राणों के प्रति अनुदार नहीं थी। आजतक किसी भी विद्वान ने ऐसा कोर्इ सबूत पेश नहीं किया है जो यह बताय कि कोर्इ बौद्ध राजा किसी राजा ने या बौद्ध प्रजा ने किसी भी ब्राह्राणीय मूर्ति को या ब्राह्राण स्थल को क्षति पहुँचाने का प्रयास किया हो। वस्तु ब्राह्राणों ने सैकड़ो ऐसे कार्य किये है वे ही वास्तव में बौद्धों के शत्रू थे। इसलिए मूर्ति को बगैर देखभाल के त्याग दिया हो और बाद में उस मूर्ति के बारे में शैव वैष्णवों में संघर्ष हुआ ऐसा कभी भ्ळाी किसी भी मुलत: ब्राह्राणीय मर्ति के विषय में नहीं होता है। सौभाग्यवस आज तक इस भगवान के विषय में गलतफहमिया है तथा शिव या विष्णु के रूप में उन्हें गलत समझा जा रहा है। और जैसे-जैसे वैष्णव और शैव इस देवता पर अपना-अपना दावां जजाते है वैसे-वैसे देवता की महिमा बढ़ती है वास्तव में यह क्षेत्र तथा मूर्ति बौद्ध ही है जो सब जनता को मंगलता का संदेश अनन्तकाल से दे रहा है।
मंदिर संस्था का निर्माण बौद्ध ने किया। इनके गौरव को अपना के लिए बौद्ध मंदिरों को केवल अपने स्वार्थी उíदेश्य पूर्ति के लिए ब्राह्राणों ने हथिया लिया। और प्रजा को लुभाकर आकृष्ट करने के लिए उनकी रचना में हिन्दू धर्म योग्य परिवर्तन करके उन्हें हिन्दू मंदिर बना दिया, ऐसा बहुत पहले ही कर्इ  विद्वानाें ने साबित किया है। आर.जी. भांडारकर, पर्सी ब्राउन, जी.एस.घुर्ये, एल.एम.जोशी, डी.डी.कोशांबी, के.ए.एन.शास्त्री के आर.वैधनाथन आदि विद्वानों के विचारों का और उनके द्वारा प्रस्तुत कर्इ स्रोतों का तथा सबूतों का परामर्श ठीक ढंग से पूरी तरह लिया गया है।
ऐतिहासिक दृषिट से और उपलब्ध स्रोताें के प्रमाणों से, अबतक तिरूमलार्इ की हकीकत, उसे बौद्ध क्षेत्र बताती है, उसके नाम से लेकर उसके चाल, ढाल, वेश भूषा लोकाचार आदि के ढंग को लेकर उसके रीतिरिवाजाें जैसे कि मुंडन, केशदान, रथयात्रा आदि सबको एक साथ लेकर बौद्ध पद्धति है। ब्राह्राणी जीवन पद्धति में रथयात्रा का उदगम नहीं होता क्याेंकि यहां जाति पद्धति है अस्पृश्यता का कÍरता से पालन है। किसी को भी स्पर्श नहीं किया जाता जिन्हाेंने स्नान नहीं किया हो भले ही वे अपने सगे संबंधी हो या स्वयं के रक्त की महिला ही क्याें न हो इन परिसिथतियों में रथ यात्रा की परंपरा का उदगम बौद्ध पद्धति से हुआ है और जहां-जहां इस प्रथा का पालन हो रहा है वे सभी स्थल तथा वहां के देवी देवतायें निश्चीत ही बिना किसी सक के बौद्ध ही है। 
नालंदा विश्वविद्यालय क्यूँ जलाया गया ?

बिहार का ऐतिहासिक नाम …मगध है,बिहार का नाम ‘बौद्ध विहारों’शब्द का विकृत रूप माना जाता है,इस की राजधानी पटना है जिसका पुराना नाम पाटलीपुत्र था.!
आज आप को एक ऐसे दर्शनीय जगह लिए चलते हैं जिसके बारे में बहुत लोग जानते हैं.-

बिहार में एक जिला है नालंदा…संस्कृत में नालंदा का अर्थ होता है “ज्ञान देने वाला” (नालम = कमल, जो ज्ञान का प्रतीक है; दा = देना).

कहते हैं कि इस की स्थापना ४७० ई./४५० ई.[?] में गुप्त साम्राज्य के राजा कुमारगुप्त ने की थी। यह विश्व के प्रथम पूर्णतः आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक था जहां १०,००० छात्र और २,००० शिक्षक रहते थे।
भारत में दुनिया के सबसे पहले विश्वविद्यालय तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना सातवीं शताब्दी ईसापूर्व यानी नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना से करीब १२०० साल पहले ही हो गई थी। यह नालंदा भारत का दूसरा प्राचीन विश्वविद्यालय है, जिसका पुनर्निर्मा…ण किया जा रहा है। विश्वविद्यालय की स्थापना से काफी पहले यानी करीब १००० साल पहले गौतम बुद्ध के समय (५०० ईसापूर्व ) से ही नालंदा प्रमुख गतिविधियों का केंद्र रहा है।
तमाम बौद्ध साक्ष्यों में उल्लेख है कि गौतमबुद्ध नालंदा में कई बार आए थे। वहां एक आम के बगीचे में धम्म के संदर्भ में विचार विमर्श किया था। आखिरी बार गौतम बुद्ध नालंदा आए तो मगध के सारिपुत्त ने बौद्ध धर्म में अपनी आस्था जताई। यह भगवान बुद्ध का दाहिना हाथ और सबसे प्रिय शिष्यों में एक था। केवत्तसुत्त में वर्णित है कि गौतम बुद्ध के समय नालंदा काफी प्रभावशाली व संपन्न इलाका था। शिक्षा का बड़ाकेंद्र बनने तक यह घनी आबादी वाला जगह बन गया था। विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद दुनिया के सबसे लोकप्रिय जगहों में शुमार हो गया। बौद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय में यहां अकाल पड़ने का भी उल्लेख है। गौतम बुद्ध का शिष्य सारिपुत्त तो नालंदा में ही पैदा हुआ और यहीं इसका निधन भी हुआ ( सारिपुत्त के निधन की जगह नालका की पहचान की इतिहासकारो ने नालंदा से की है।
बौद्ध अनुयायी सम्राट अशोक ( २५०ईसापूर्व ) ने तो सारिपुत्त की याद में यहां बौद्ध स्तूप बनवायाथा। नालंदा तब भी कितना महत्वपूर्ण केंद्र था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह जैन धर्मावलंबियों के लिए भी महत्वपूर्ण केंद्र था। जैन तीर्थंकर महावीर ने जिस पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया था, वह नालंदा में ही था। नालंदा पाचवीं शताब्दी में आकर शिक्षा के सबसे बड़े केंद्र में तब्दील हो गया।
अब पुनः अपनी स्थापना से करीब १५०० साल बाद विश्वप्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के फिर से दुनिया का वृहद शिक्षाकेंद्र बनाने की नींव पड़ गई है। आज राज्यसभा ने इससे संबंधित विधेयक को मंजूरी दे दी। गुप्तराजाओं के उत्तराधिकारी औरपराक्रमी शासक कुमारगुप्त ने पांचवीं शताब्दी में इस विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। गुप्तों के बाद इसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और पाल शासकों का भी संरक्षण मिला। इस विश्वविद्यालय की नौवीं शती से बारहवीं शती तक अंतरर्राष्ट्रीयख्याति रही थी। सातवीं शती में जब ह्वेनसांग आया था उस समय १०००० विद्यार्थी और १५१० आचार्य नालंदा विश्वविद्यालय में थे। इस विश्वविद्यालय में भारत के विभिन्न क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस तथा तुर्की से भी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे।

नालंदा विश्वविद्यालय में विद्यार्थी विज्ञान, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, तर्कशास्त्र, गणित, दर्शन, तथा बौद्ध धर्मों का अध्ययन करते थे। चौथी से सातवीं ईसवी सदी के बीच नालंदा का उत्कर्ष हुआ।

अध्ययन करने के लिए चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, इंडोनेशिया, इरान और तुर्की आदि देशो से विद्यार्थी आते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेन्सांग ने भी ईस्वी सन् ६२९ से ६४५ तक यहां अध्ययन किया था तथा अपनी यात्रा वृतान्तों में उसने इसका विस्तृत वर्णन किया है। सन् ६७२ ईस्वी में चीनी इत्सिंग ने यहाँ शिक्षा प्राप्त की।कहा जाता है कि नालंदा विश्वविध्यालय में चालीस हजार पांडुलिपियों सहित अन्य हजारों दुर्लभ हस्त लिखित पुस्तकें थी !

खगोलशास्त्र के अध्ययन के लिए एक विशेष विभाग था। एक प्राचीन श्लोक के अनुसार आर्यभट नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति भी थे। आर्यभट के लिखे तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है। दशगीतिका, आर्यभट्टीय और तंत्र।

यहाँ के तीन बड़े बड़े पुस्तकालय के नाम थे -:

1. रत्न सागर 2. विढ्ध्यासागर 3. ग्रंथागार
बौद्ध धर्म असल में ब्राहमणवादी गलत कर्म कंडों और जातिगत बटवारे की खिलाफत के रूप में फल फूला और स्वीकार किया गया | समानता और समरसता, ऊच नीच फ़ैलाने वाले ये बात ब्राह्मणों को कतई बर्दास्त नहीं हो रही थी ,परिणाम स्वरुप ब्राह्मणों द्वारा षडीयन्त्र ही मौर्या साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण था| मौर्या साम्राज्य के पतन के बाद बौद्ध धर्म का कोई सरक्षक नहीं बचा और तब कट्टर ब्राह्मणों ने सभी बौद्ध विहार, बौद्ध मूर्ती,विश्विद्यालय,साहित्य एव ईतिहास को नस्ट करना शुरू किया| इसी कड़ी में नालंदा विश्वविद्यालय की ऐसी दुर्गति करके भारत देश में से समानता और शिक्षा को बंद करके ब्राह्मण धर्म को थोपने के लिए मनुवादी संविधान लागू किया गया |

नालंदा विश्वविद्यालय को इन महास्वार्थी लोगों ने तहस नहस कर दिया और पुस्तकालय में आग लगा दी, कहते हैं यह ६ माह तक जलती रही और आक्रांता इस अग्नि में नहाने का पानी गर्म करते थे.

आप अंदाज लगा सकते है कि जब आग लगाई गयी तो ६ महीनो तक जलती रही तो कितनी शोध और ग्रन्थ जले होंगे 

Tuesday, 8 May 2018

मनुवादी मेरा इतिहास छुपा नही सकता
जानिए मार्शल आर्ट के पिता बोधिधर्म के बारे में
bodhidharma history



मार्शल आर्ट्स में सबसे प्रमुख है कुंग फू और दुनियां में इसे सिखने सबसे अच्छी जगह है चीन का शाओलिन टेम्पल. यह बोद्ध धर्म का मंदिर होने के साथ साथ मार्शल आर्ट का एक ट्रेनिंग स्कूल भी है. दुनियां भर से यहाँ लोग कुंग फू सिखने की इच्छा से आते है लेकिन क्या आप जानते है जो शाओलिन टेम्पल में इस कला का लेकर आया वह एक भारतीय थे जिनका नाम बोधिधर्म था. शायद आप में ज्यादातर लोग नहीं जानते की कुंग फू असल में भारत की ही देन है जो आज यहाँ लगभग समाप्त हो चुकी है और चीन ने इसे अपना लिया है. तो चलिए जानते है की आखिर कुंग फू मार्शल आर्ट भारत से चीन तक कैसे जा पंहुचा.

BODHIDHARMA STORY AND HISTORY IN HINDI –  बोधिधर्म का इतिहास


बोधिधर्म, जिन्हें जापान में दारुमा के नाम से भी जाना जाता है,  एक भारतीय बौद्ध भिक्षु थे, जिन्हें चीन में जेन बौद्ध धर्म का संस्थापक माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि बोधिधर्म भारत के कांचीपुरम शहर में पैदा हुए थे, जो 450-500 ई.पू. के प्रारंभ में मद्रास शहर के पास स्थित था। वह कांचीपुरम शहर के राजा सुगंध के तीसरे पुत्र थे. बोधिधर्म/ Bodhidharma को कांचीपुरम का राजा बनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. उन्हें बुद्ध की शिक्षाओं में रुचि थी इसलिए 7 साल की छोटी उम्र से ही वे अपना ज्ञान दिखाने लगे।

बोधिधर्म ने अपने गुरु महाकाश्यप के अधीन प्रशिक्षण प्राप्त करना शुरू कर दिया और एक भिक्षु बन गए। उनका नाम बदलकर बोधितारा से बोधिधर्म रख दिया गया. बाद में उन्होंने एक मठ में रहना शुरू किया जहां उन्होंने बुद्ध धर्म का मार्ग अपनाया ।

अपने पिता की मृत्यु के बाद, बोधिधर्म/ Bodhidharma ने अपने गुरु के मार्गदर्शन में पूरे भारत में ज्ञान और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को फैलाना शुरू किया।

कई सालों बाद, अपने गुरु के देहांत के बाद, बोधिधर्म ने मठ छोड़ दिया और अपने गुरु के अंतिम अनुरोध को पूरा करने के लिए चीन चले गए. बुद्ध की वास्तविक शिक्षाओं को उन्होंने चीन में ही आगे बढ़ाया। हालाकिं चीन के लिए उनकी यात्रा का वास्तविक मार्ग अज्ञात है, अधिकांश विद्वानों का मानना ​​है कि वह समुद्र के मार्ग से मद्रास से चीन के गुआंगज़ौ प्रांत तक गए थे।

कुछ विद्वानों का यह भी मानना ​​है कि वह पीली नदी से लुओयांग तक पामीर के पठार से होकर गुजरे। लुओयांग उस समय बौद्ध धर्म के एक सक्रिय केंद्र के रूप में प्रसिद्ध था. ऐसा कहा जाता है कि बोधिधर्म/ Bodhidharma को चीन यात्रा में तीन साल लग गए थे.



चीन में जब, बोधिधर्म ने बौद्ध धर्म का प्रसार करना शुरू किया , तब वास्तविक बौद्ध धर्म पर उनके शिक्षण के कारण उन्हें संदेह और भयंकर विरोध का सामना करना पड़ा। उन्होंने दावा किया कि बौद्ध शास्त्र केवल ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक मार्ग है, और आत्मज्ञान केवल ध्यान के अभ्यास से ही प्राप्त किया जा सकता है।
बोधिधर्म ने प्रामाणिक ध्यान-आधारित बौद्ध धर्म की शिक्षा को बहिष्कार और खारिज कर दिया. उन्हें वहां कई महीनों तक भिखारी के रूप में रहना पड़ा। उन्होंने लुओयांग प्रांत छोड़ दिया और हेनान प्रांत में चले गए जहां से उन्होंने शाओलिन मठ की यात्रा की।

शाओलिन/ shaolin temple में उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया इसलिए  वे पास की एक गुफा में रहने लगे , जहां उन्होंने ध्यान लगाया और नौ सालों  तक किसी से बात नहीं की.


उनकी एकाग्रता और समर्पण देखकर शाओलिन भिक्षु उनसे बहुत प्रभावित हुए और अंत में उन्हें मठ में प्रवेश दिया गया । उन्होंने भिक्षुओं को ध्यान के बारे में सिखाया लेकिन उन्होंने जल्दी ही यह एहसास किया कि वे सब ध्यान के कठोर और लंबे सत्रों को सहन करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं थे। बोधिधर्म ने भारतीय श्वास व्यायाम और साथ ही मार्शल आर्ट/ कुंग फू द्वारा उनकी ताकत और संकल्प को बढ़ाने की कोशिश की ।

बोधिधर्म शाओलिन में कई वर्षों तक रुके जहाँ उन्होंने ध्यान के साथ  कुंग फू की भी ट्रेनिंग दी. 100+ साल की उम्र में उन्होंने अपनी आखरी सांस ली. कुछ शिष्य ने उनसे  बदला लेने के लिए उन्हें जहर दे दिया क्योंकि उन्हें उत्तराधिकारी के रूप में नहीं चुना गया था।

बोधिधर्म एक ऊर्जावान शिक्षक थे. अपने जीवनकाल में उन्होंने अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास किये। उनके विचारों का विरोध किया गया । इसके बावजूद उन्होंने प्रत्येक आदमी को जागृत करने के लिए प्रोत्साहित किया.

 बोधिधर्म झेन बौद्ध धर्म और शाओलिन मार्शल आर्ट दोनों के पिता के रूप में जाना जाने जाते है लेकिन आज भी वे दृढ़ संकल्प,  इच्छा शक्ति, आत्म-अनुशासन और जागृति का एक प्रमुख प्रतीक है।


आज इनके द्वारा सिखाये गये मार्शल आर्ट्स दुनियां भर में लोकप्रिय है लेकिन दुःख की बात यह है की इनकी मात्रभूमि भारत में आज भी ज्यादातर इनके बारे में नहीं जानते.





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संविधान बाबासाहेब ने ही क्यों लिखा और कोई दूसरा क्यों नही लिख सका ?


बाबासाहब नं.१ थे गांधी भी Barrister थे, नेहरु भी Barrister थे, राजगोपालाचारी,मुंशी,बी. एन. राव ,जे . पी. कृपलानी

ऐसे बहुत सारे लोग थे ।

फिर बाबासाहब को ही संविधान क्यों लिखना पड़ा.?

सरदार पटेल ने कहा था कि ” Constitution तो वह तब लिखेंगे जब वे संविधान सभा मे आयेंगे , हम उनको संविधान सभा मे आने ही नही देंगे, हम उन्हे जीतने ही नहीं देंगें ” ऐसा Open Declaration वल्लभभाई पटेल ने दिया था !”

इसलिये बाबासाहब को संविधान सभा मे जाने के लिये ventilator के सहारे जाना पडा,वो ventilator था, “जैसुर-खुलना” बंगाल का इलाका, वहा से बाबा साहब को लड़ना पडा और बाबासाहब संविधान सभा मे चुने गये.उस वक्त भारत मे 560 रियासतों में से हैद्राबाद, भोपाल, त्रवनकोर, कोल्हापूर, इनको भारत मे कैसे शामिल किया जाये , इनका Constitutional Settlement कैसे किया जाये इसके लिये British Cabinet की Meeting हुई ।हैदराबाद, त्रावनकोर, कश्मीर इन तीनों राज्यों ने ये declare किया कि, हम भारत मे शामिल नहीं होंगे, हम पाकिस्तान की तरह स्वतंत्र होंगे ।

उस वक्त नेहरु, पटेल और गांधी किसी को ये समझ मे नहीं आ राहा था कि, इन 560 रियासतों को किस तरह settlement किया जाये..!

17 जुन 1947 में बाबासाहब ने International Press को संबोधित किया ।

जिसमें उन्होने तीन बाते बोली

(1) ब्रिटिश पार्लियामेंट को भारत के राज्य के संप्रभुता, सार्वभौम के उपर Law बनाने का कोइ अधिकार नहीं हैं ! ऐसा कोइ International Law नहीं हैं । जिसके तहत ये राज्य भारत मे रहेंगे, या नहीं रहेंगे ये decide करने का अधिकार और power ब्रिटीश पार्लियामेंट के पास नहीं हैं..!

(2) और इन सारे राज्यों के राजाओ से अपिल है कि, “अगर तुम सोचते हो कि आप सयुक्त राष्ट्र मे जाओगे , और सयुक्त राष्ट्र भारत की सार्व भौमिकता नजर अंदाज करके आपको Independence बनायेगा तो आपसे बडा नासमझ कोइ नहीं है..! ”

(3) इन सारे राजाओं को बाबासाहब ने कहा,” आप सभी भारत मे शामिल हो जाओ , हम इसी देश के अंदर आपका Constitutional Settlement कर सकते हैं और हम एक बडा राष्ट्र बना सकते हैं !” और यह सब बाबासाहब ने तब कहा था, जब नेहरु, गांधी और पटेल को समझ मे नहीं आ रहा था कि इन राज्यों का Integration कैसे किया जाये !

बाबा साहब आंबेडकर को संविधान लिखने का मौका क्यूं मिला इसके दो मुख्य कारण हैं –

(1) उस समय बाबासाहब से बडा Constitutional expert, Constitutional philosopher दुनिया मे कोई नहीं था ….1927 Bombay legislative council से लेकर labour Ministry, Constitute assembly तक जो बाबासाहब आंबेडकर ने विविध legislative के काम किये थे उसे पूरी दुनिया जानती थी !Govt. Of India act 1935 जो बना उसके लिये जो तीन Rountable Conferences हुइ उसमें बाबासाहब ने जो views दिये थे । उनका 50% amendment Govt. Of India act 1935 मे हूआ था !

(2) मुसलमानों के बाद भारत में दूसरा सबसे बडा Minority, schedule caste था,और बाबासाहब आंबेडकर ने ये stand लिया था कि, अगर बनने वाले संविधान में हमारे संवैधानिक अधिकार सुरक्षित नहीं रखे गये तो, वह संविधान हमें मंजूर नहीं होगा ।

नेहरू और गांधी को ये डर था कि, यदि partition of India हुआ और उसके बाद अगर संवैधानिक solution नहीं मिला, तो भारत के 560 टुकडे हो सकते हैं ।भारत का balkanization हो सकता हैं । और अगर ये हमे रोकना हैं, तो एक ही आदमी इस देश को बचा सकता है, और वो हैं Dr बाबासाहब आंबेडकर और इसलिए Dr. बाबासाहब आंबेडकर को संविधान लिखने का मौका मिला

संविधान सभा मे Drafting कमैटी को मिलाकर total 23 कमैटीया बनीं ।

जिसमें से २० कमैटी पे अकेले बाबासाहेब ने ही काम किया और भारत, संसदीय प्रणाली की सरकार वाला एक प्रभुसत्तासम्पन्न, समाजवादी धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यह गणराज्य भारत के संविधान के अनुसार शासित है। भारत का संविधान संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर भारतीय संविधान के निर्माता है। संविधान मसौदा समिती के अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपनी खराब सेहत के बावजुद महज तीन वर्ष भीतर 2 वर्ष 11 महिने 18 दिन में दुनिया का सबसे बडा, बेहतरीन एवं शक्तिशाली संविधान का निर्माण किया और 26 नवबंर 1949 को राष्ट्रपती राजेंद्र को सौप दिया।इस दिन संविधान दिवस 26 नवंबर को मनाया जाता है और 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है।

इससे ये मालुम होता हैं कि बाबा साहब दुनिया के सबसे बडे Constitutionality Expert थे।

Drafting कमटी मे जितने लोग थे उनमे से कोइ बिमार हूआ,कोइ छुट्टी पर चला गया,कोइ विदेश गया,कोई अपने घर के कामों में व्यस्त रहे, किसी ने रिजाईन की वह जगह खाली वह रही. इसलिये खुद टि. टि. कुश्नमाचारी बोले कि ” पूरा संविधान बनाने का काम अकेले बाबासाहब पर आ गया और उन्होने उसे बहुत खूबी से निभाया !”


इसलिये 1950 के बाद नया भारत बना जिसे हम लोकतांत्रिक और संविधानिक भारत कहते हैं, जिसका बाबासाहब ने निर्माण किया “लोकतांत्रिक और संवैधानिक भारत के राष्ट्रपिता Dr. बाबासाहब आंबेडकर हैं”, ये हमे समझने कि जरुरत हैं संविधान प्रेमियों “उत्तम” जानकारी शेयर करें.

Tuesday, 1 May 2018


*मुहूर्ताची वेळ*

कोणती वेळ कामासाठी योग्य या बद्दल तुकोबाराय यांनी या अभंगात सांगितले आहे .....
पंचांगाच्या मागे। लागतो अडाणी,पाहे क्षणोक्षणी। शुभाशुभ ॥१॥
मूर्ख भट म्हणे। त्याज्य दिन आज,दक्षिणेची लाज। बाळगेना ॥ २॥
कामचुकारांना। धार्जिणे पंचांग,सडलेले अंग। संस्कृतीचे ॥३॥
मुहूर्ताचे वेड। मूर्खांना शोभते,आयुष्य नासते। पंचांगाने ॥४॥
चांगल्या कामाला। लागावे कधीही,गोड फळ येई। कष्ट घेता ॥५॥
दुष्ट कामे केली। शुभ वेळेवरी,माफी नाही तरी। शिक्षेतुनी ॥६॥
वेळहवा पाणी। आकाश बाधेना,भटांच्या कल्पना। शुभाशुभ ॥७॥
विवेकाने वागा। होऊनी निर्भय,अशुभाचे भय। निर्बुद्धीना ॥८॥
सत्य सांगा लोका। जरी कडू लागे,चालानाही मागे। आला कोण ॥९॥
- *संत तुकाराम*
तुकाराम महाराजांचा वरील अभंग जवळच्या नातेवाईक व समाजबांधवांना समजावून सांगितल्यास मोठे समाजकार्य होईल.
समाज्यात आपली निश्चितच विश्वासार्हता वाढेल.
*सत्य सांगा लोका। जरी कडू लागे*,
*
चालानाही मागे। आला कोण* ॥९॥
- *संत तुकाराम*