*बाबासाहबके बाद का हमारा धम्मसफर*
बोधिसत्व डाँ बाबासाहब अम्बेडकरजीने हमे अखिल मानव जातीके लिए कल्याणकारी हो ऐसा बौद्ध धम्म हमको दिया और उसके साथमे बौद्ध धम्म समझाने के लिए "बुद्ध और उसका धम्म" भी दिया पर हमने क्या किया हम धर्म कोहि धम्म समझ बैठे और हमने धर्मयुक्त मिलावटी बौद्ध धम्म अपना लिया बल्कि धर्म और धम्म ये विभिन्न है धम्मको आचरण मे कैसे लाना है ये साठँ साल होनेतक आजभी हमारी समझ मे नहि आया .....
आजतक कितने लोगोँने 22 प्रतिज्ञाये आचरण मे लाने कि कोशिश कि ? बहोत सारे लोगोँको तो त्रिसरण और पंचशील भी मुँहजबानी नही उसको आचरण मे लाना तो दुर कि बात है ! धम्म के प्रचार और प्रसार कि जिम्मेदारी जिन विद्वानो और नेताओँपर है वो खुद बाबासाहबके नाम कि दलाली कर खुद का पेट भरनेमें मश्गुल है... सभाओँमे घटोँ घंटो बाबासाहबपर व्याख्यान देनेवाले विद्वान रातको शराब मे धुत रहते है और हमारे नेता कलतक जिनको धर्माँध पक्ष बोलते थे आज उसीमे जाकर उनके तलवे चाँट रहे है RPI के हजारो गुट ईन्होने सत्ता के लालच मे खोल रखे है पर जिस समता सैनिक दल को आज चलाने कि जरुरत है उसे ईन्होने दिक्षाभुमी और चैत्यभुमीतक सिमित कर रखा है ये ढंगसे बाबाके विचारोपर चल नहि सकते और ना ही बुद्ध का अनुसरण कर सकते है शराब के नशेमे जयभिम चिल्लानेवालो कि भी यहा कमी नहि है ....
1938 मे चिपलुणमे एक सभामे बाबासाहबने कहा था मुझे आपमैसे किसीको प्रधानमंत्री बने हुए देखना है आज 80 साल बादभी परीस्थितीया कितनी बदली ये संशोधन का विषय है और ये हमारी राजकिय प्रगती दिखाता है आज जिन नौजवानोपर समाज कि आस लगी हुई है वो शराब ,तबांकु ,जर्दा,मावा, गुटखा ई. चंगुल मे फँसकर अपना जीवन बर्बाद कर रहे है बाबासाहबने ईतनी सहुलियते देने के बावजुद भी सैँकडा 80% बच्चे मँट्रिकके बाद पढ नहि सकते और बाबाने दि हुई सहुलियतोका नाजायज लोँग हि फायदा उठा रहे है हमारे समाजमे नौकरी करनेवालोकि संख्याभी नगण्य है और जो पढ लिखकर आगे गये है वो समाजके प्रति अपनी जिम्मेदारी भुल गये है तो ऐसा धम्मसफर चल रहा है यकिनन अगले 100 सालोँतक हम प्रबुद्ध भारत कर संकेगे ऐसी आशा है ....
@ जयभिम @
बोधिसत्व डाँ बाबासाहब अम्बेडकरजीने हमे अखिल मानव जातीके लिए कल्याणकारी हो ऐसा बौद्ध धम्म हमको दिया और उसके साथमे बौद्ध धम्म समझाने के लिए "बुद्ध और उसका धम्म" भी दिया पर हमने क्या किया हम धर्म कोहि धम्म समझ बैठे और हमने धर्मयुक्त मिलावटी बौद्ध धम्म अपना लिया बल्कि धर्म और धम्म ये विभिन्न है धम्मको आचरण मे कैसे लाना है ये साठँ साल होनेतक आजभी हमारी समझ मे नहि आया .....
आजतक कितने लोगोँने 22 प्रतिज्ञाये आचरण मे लाने कि कोशिश कि ? बहोत सारे लोगोँको तो त्रिसरण और पंचशील भी मुँहजबानी नही उसको आचरण मे लाना तो दुर कि बात है ! धम्म के प्रचार और प्रसार कि जिम्मेदारी जिन विद्वानो और नेताओँपर है वो खुद बाबासाहबके नाम कि दलाली कर खुद का पेट भरनेमें मश्गुल है... सभाओँमे घटोँ घंटो बाबासाहबपर व्याख्यान देनेवाले विद्वान रातको शराब मे धुत रहते है और हमारे नेता कलतक जिनको धर्माँध पक्ष बोलते थे आज उसीमे जाकर उनके तलवे चाँट रहे है RPI के हजारो गुट ईन्होने सत्ता के लालच मे खोल रखे है पर जिस समता सैनिक दल को आज चलाने कि जरुरत है उसे ईन्होने दिक्षाभुमी और चैत्यभुमीतक सिमित कर रखा है ये ढंगसे बाबाके विचारोपर चल नहि सकते और ना ही बुद्ध का अनुसरण कर सकते है शराब के नशेमे जयभिम चिल्लानेवालो कि भी यहा कमी नहि है ....
1938 मे चिपलुणमे एक सभामे बाबासाहबने कहा था मुझे आपमैसे किसीको प्रधानमंत्री बने हुए देखना है आज 80 साल बादभी परीस्थितीया कितनी बदली ये संशोधन का विषय है और ये हमारी राजकिय प्रगती दिखाता है आज जिन नौजवानोपर समाज कि आस लगी हुई है वो शराब ,तबांकु ,जर्दा,मावा, गुटखा ई. चंगुल मे फँसकर अपना जीवन बर्बाद कर रहे है बाबासाहबने ईतनी सहुलियते देने के बावजुद भी सैँकडा 80% बच्चे मँट्रिकके बाद पढ नहि सकते और बाबाने दि हुई सहुलियतोका नाजायज लोँग हि फायदा उठा रहे है हमारे समाजमे नौकरी करनेवालोकि संख्याभी नगण्य है और जो पढ लिखकर आगे गये है वो समाजके प्रति अपनी जिम्मेदारी भुल गये है तो ऐसा धम्मसफर चल रहा है यकिनन अगले 100 सालोँतक हम प्रबुद्ध भारत कर संकेगे ऐसी आशा है ....
@ जयभिम @
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